पवनपुत्र हनुमान जी से सीखें मैनेजमेंट से जुड़े 10 गुण

भगवान भोलेनाथ के ग्यारहवें अवतार कहे जाने वाले अंजनी पुत्र हनुमान जी हर कार्य में निपुण थे । हनुमान जी एक बेहद ही कुशल प्रबंधन थे । उनके मन, कर्म एवम वाणी पर जिस तरह का संतुलन है काफी कुछ सीखा जा सकता है । उनके ज्ञान ,बुद्धि , विद्या और बल के साथ साथ उनमें विनम्रता भी अपार थी।

हनुमान जी का जाप करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। हनुमान जी पराजय से बचाते है। सही समय पर कार्य करना और उस कार्य को अंजाम तक पहुंचाना उनके चत्मकारिक गुणों में से एक है। आइए जानते है हनुमान जी के उन 10 चमत्कारिक गुणों के बारे में जिनसे आप भी बहुत कुछ सीख सकते है ।

सीखने की लगन

प्रभु हनुमान शुरू से लेकर कुछ न कुछ सीखते रहे है । हनुमान जी ने अपनी माता अंजनी , पिता केसरी और धर्म पिता पवनपुत्र से भी शिक्षा ली थी। उन्होंने माता शबरी के गुरु श्री मातंग ऋषि से भी शिक्षा प्राप्त की । इसके साथ ही उन्होंने सूर्य देवता से भी शिक्षा ली ।

कार्य में कुशलता और निपुणता हनुमान जैसी होनी चाहिए

कहते है कि प्रभु हनुमान जी जिस भी कार्य को करने की इच्छा ठान लेते थे । उसे बड़ी ही कुशलता और निपुणता के साथ करते थे। हनुमान जी में किसी कार्य को करने की बड़ी ही अनूठी शैली थी । उन्होंने सुग्रीव की सहायता के लिए उन्हे श्री राम जी से मिलवाया था । हनुमान जी ने श्री राम के सभी काम बल और बुद्धि से किए । हनुमान जी ने अपनी वानर सेना लेकर समुद्र लांघने तक जो अपनी बुद्धि और कार्य में जो कुशलता दिखाई ।उससे सीखना चाहिए ।

सही प्लानिंग, वाल्युज और कमिटमेंट

प्रभु हनुमान जी को जीतने भी कार्य दिए जाते थे। पहले उसकी प्लानिंग बनाते थे फिर उस कार्य को करने में लग जाते थे । जब श्री राम ने हनुमान जी को लंका भेजा था तो उन्होंने हनुमान जी से कहा था कि यह अंगूठी वह सीता माता को दिखा दें । कहना कि उनके स्वामी राम उन्हे जल्द लेने आयेंगे । जब हनुमान जी गए तो उन्होंने समुद्र पार करने से पहले तमाम तरह की मुसीबतों के लिए प्लान बना लिया था।

चाहे वह राक्षसों का वध हो, रावण को कड़ा संदेश देना हो । रावण की लंका जलाने से विभीषण से मित्रता करने की योजना हो । इससे हनुमान जी की कमिटमेंट, डेडिकेशन और डीवोशन का पता चलता है । पहले सब सोचते है । फिर उस बाधा को सुलझा लेते है ।

प्रभु की अपार दूरदर्शिता

अंजनी पुत्र हनुमान जी की अपार दूरदर्शिता को ऐसे समझिए । उन्होंने सहज और सरल वार्तालाप के अपने गुण से कपिराज सुग्रीव श्री राम जी की मित्रता करवाई। और फिर बाद में रावण के भाई विभीषण की मित्रता करवाई । आपको बता दें की सुग्रीव ने श्री राम की सहायता से ही बाली को मारा था । और राम जी ने विभीषण की मदद से रावण को लंका में मारा था । यह सब प्रभु हनुमान की चतुरता और कुशलता से ही संभव हो सका था ।

कुशल नीति

किसी और की स्त्री एवम राजकोष हड़पने के बाद सुग्रीव ने श्री राम का साथ छोड़ दिया था। लेकिन प्रभु हनुमान जी ने सुग्रीव को साम दाम दण्ड भेद सभी नीतियों का उपयोग कर समझाया कि श्री राम को दिए गए वचन को पूरा करना है । इसके अलावा हनुमान जी ऐसे कई कार्य किए जहां उन्होंने कुशल नीति का परिचय दिया ।

साहस

प्रभु हनुमान जी में साहस की कोई कमी नहीं थी। इसमें कोई दोहराए नहीं कि हनुमान जी विषम से विषम परिस्थितियों में विचलित हुए अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से आगे बढ़ते चले गए थे । वह भले मन वाले व्यक्ति थे । हनुमान जी बल, साहस, नीति एवम बुद्धि की प्रसंशा रावण भी करता था ।

लीडरशिप क्षमता

हनुमान जी श्री राम के सेवक थे । उनकी हर बात को मानते थे । परंतु प्रभु हनुमान वानर सेना के लीडर भी थे । भगवान सबको साथ लेकर चलने की क्षमता को जानते थे । रास्ते में किसी भी प्रकार की मुश्किल , कठिनाई से पूरे साहस के साथ निपटते थे । वानर सेना की हिम्मत बढ़ाते हुए सही मार्गदर्शक भी करते थे । हमें उनकी लीडरशिप क्षमता से सीखना चाहिए।

सभी परिस्थिति में खुश रहना

अकेले लंका जाना हो, वानर सेना को लीड करना हो, या फिर युद्ध के समय श्री राम के साथ हो, हनुमान जी के चेहरे पर कभी चिंता ,निराशा और शोक नहीं दिखा । हनुमान जी किसी भी कार्य करने के दौरान गंभीर नहीं रहे । हर समय खुश दिखे । वह अपना विनोदी स्वभाव हर परिस्थिति में बनाए रखते थे । रावण को संदेश देना हो या बलराम का घमंड चूर करना हो। प्रभु हनुमान जी हर परिस्थिति में मस्त रहते थे ।

शत्रु पर निगाहें

हनुमान जी हमेशा अपने शत्रु के प्रति सचेत रहते थे । हनुमान भोजन कर रहे हो, आसमान में उड़ रहे हो, भजन कर रहे हो , या फिर श्री राम के साथ वार्तालाप कर रहे हो परंतु अपनी नजर हमेशा शत्रुओं पर जमाए रहते थे । विरोधी के असवावधान रहते ही विरोधी को जान लेना । शत्रु के बीच दोस्त को पहचान लेना । उनके हर कार्य में थिंक और एक्ट का अद्भुत संतुलन था ।

विनम्रता

इसमें कोई शक नहीं है कि प्रभु महान शाक्तिशाली थे । उन्होंने लंका में आग लगाई, शत्रुओं का संहार किया । शनिदेव का घमंड चूर किया । इसके साथ ही भीम, अर्जुन, बलराम का घमंड चूर किया । संसार जगत को अपने बल का परिचय करा दिया । परंतु उन्होंने कभी विनम्रता और भक्ति का साथ नही छोड़ा । अर्जुन को कई बार समझाया लेकिन उनके समझने के बाद अपना पराक्रम दिखाया । प्रभु हनुमान जी विनम्रता के धनी थे ।

Watch This Also- Hanuman Chalisa