Hanuman Jayanti : हनुमान जयंती एक हिंदू त्योहार (Festival) है जो हनुमान जयंती के रूप में हिंदू धर्म में मनाया जाता है। यह चैत्र मास में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। माना जाता है कि इस उत्सव के दिन हनुमान-जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी को कलियुग में सबसे शक्तिशाली देवताओं में से एक माना जाता है।
हनुमान जयंती कब मनाई जाती है ?
इस दिन सभी मंदिरों में तुलसीदास और हनुमान चालीसा के रामचरितमानस का प्रदर्शन किया जाता है। जगह-जगह भंडारे निर्धारित होते हैं। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर व्यवस्थित होते हैं। तमिलनाडु और केरल में, हनुमान जयंती मार्गशीर्ष महीने के पहले चंद्रमा के दिन मनाई जाती है, और उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन के दौरान मनाई जाती है। इसके विपरीत कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, यह त्योहार चैत्र पूर्णिमा से वैशाख महीने के दसवें दिन तक मनाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है हनुमान जयंती ?
हनुमान जयंती या कहें हनुमान जन्मोत्सव यह सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान हनुमान जी का जन्म हुआ था और इस दिन भक्त भगवान हनुमान जी की धूम धाम से पूजा करते हैं। और हनुमान जी से मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।
हनुमान जी की पूजा से प्रेत बाधा यंत्र टोटके आदि पास नहीं आते हैं। और सभी भक्त भगवान हनुमान जी से इस दिन अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।
भक्त हनुमान जयंती वाले दिन हनुमान जी के मंदिर जाकर बहुत सी चीजें अर्पण करते हैं। जैसे कि प्रसाद फूल नारियल तिलक भभूति गंगाजल आदि। फिर मंदिर के पुजारी उस प्रसाद को और सभी चीजों को भोग लगाकर भक्तों को वापस देते हैं।
भक्त और बहुत प्रकार से भजनसिमरन करके हनुमान जी की स्तुति कर हनुमान चालीसा का बार-2 पाठ करते है
और विभिन विभिन स्रोतों का पाठ करके हनुमान जी को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। और साथ-साथ राम नाम का भी जाप करते हैं।
हनुमान जयंती उत्सव:
हनुमान जयंती पर लोग हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। कई लोग उपवास भी रखते हैं और बड़े उत्साह और उत्साह के साथ देवताओं की पूजा करते हैं। जैसा कि माना जाता है कि ये बाल ब्रह्मचारी थे, इन्हें जनेऊ भी पहनते हैं। हनुमानजी की मूर्तियों पर चांदी और सिंदूर चढ़ाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।
एक किंवदंती है जो कहती है कि एक बार हनुमान जी ने राम के लंबे अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए अपने शरीर पर सिंदूर लगाया था और यही कारण है कि भक्त और हनुमान जी सिंदूर देना पसंद करते हैं, जिसे चोल के नाम से जाना जाता है।
आइए और जानते हैं हनुमान जी के बारे में कुछ विशेष बातें।
हनुमान जी का जन्म कैसे और कहां पर हुआ ?
हनुमान जी के माता का नाम अंजना था | श्राप की वजह से उने धरती पर आना पड़ा | महर्षि वाल्मीकि जी रचित रामायण में लिखा है कि हनुमान जी के पिता का नाम केसरी था जो कि बृहस्पति के पुत्र थे। और केसरी एक सुमेरू राजधानी के राजा थे।
माता अंजनी ने पूरे 12 साल पुत्र इच्छा के लिए भगवान रुद्र महादेव की भक्ति की फिर भगवान महादेव ने प्रसन्नता हेतु माता अंजनी को पुत्र प्राप्ति का बर दिया। इसके बाद जब निशित समय आया तब हनुमानजी ने जन्म लिया। और यह भी माना जाता है कि हनुमान जी भगवान रुद्र के यानी महादेव के ही अवतार हैं।
हनुमान जी के जन्म पर एक और कथा :
इस संदर्भ में एक और कथा है कि हनुमान जी को वायुपुत्र भी कहा जाता है। एक बार की बात है कि अयोध्या के राजा दशरथ पुत्र कामना के लिए एक यज्ञ कर रहे थे। उसके परिणाम हेतु उन्हें एक पवित्र पायासम मिला। जिसे अयोध्या के राजा दशरथ जी की तीनों पत्नियां ने सेवन करा लेकिन उसमें से कुछ एक पक्षी उठाकर वहां ले गया जहां पर माता अंजनी तपस्या कर रही थी। फिर भाई देखने वो पायासम यानी किसी तरीके से अंजना माता के हाथ में रख दिया और वह उसे प्राप्त कर गए। इसके कारण मामा जी का जन्म हुआ।
ऐसी हनुमान जी के जन्म के विषय में अन्य को ग्रंथों में तरह-तरह की बातें हैं। लेकिन इनमें से जो सबसे प्रचलित है वह आपके सामने रखने का प्रयास किया है।
कौन थे हनुमान जी के गुरु ?
हिंदू ग्रंथों के मुताबिक भगवान हनुमान जी के गुरु भगवान सूर्य देव थे। हनुमान जी ने अपनी सारी विद्या भगवान सूर्य देव से प्राप्त करी है। लोककथाओं के अनुसार, सूर्य देव को हनुमान जी का गुरु माना जाता है, हालांकि, वास्तविकता यह है कि ऋषि मनिंदर जी उनके सच्चे गुरु हैं, जो त्रेता युग के दौरान पहली बार हनुमान जी से मिले थे, जब वे माता सीता की तलाश में लंका से लौटे थे।
हनुमान जी की पूजा कैसे की जाती है, सम्पूर्ण विधि :
भक्त हनुमान जी की पूजा विभिन्न विभिन्न तरह से करते हैं। जिसकी जैसी श्रद्धा वह उसी प्रकार से हनुमान जी को पूछता है। सबसे सरल हनुमान जी की पूजा का जो तरीका है वह तो यही है कि हर मंगलवार और शनिवार को भगवान हनुमान जी को चमेली के तेल में मुंडा लाल सिंदूर हनुमान जी को लेपन करना चाहिए और उनके समक्ष एक तिल्ली के तेल या घी के दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए और उनके समक्ष बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
अगर कोई व्यक्ति संकट मैं फसा है तो उसे हनुमान जी के समक्ष बैठकर नियमत संकट मोचन का पाठ करना चाहिए। जिसे करने से हनुमान जी सभी प्रकार की विघ्न और संकट को हर लेते हैं।
विद्वानों द्वारा अनेक प्रकार की पूजा विधि बताई गई है जितनी आपके समक्ष लिखी जाए उतनी कम पर सबसे सरल तो यही है कि भगवान हनुमान जी को भक्तों का सरलता और सादगी वाला भाव , धर्म का आचरण ,नेक कर्म और कुछ मात्र भजन सिमरन हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं।
हनुमान जी की शक्तिया :
तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा में वर्णन है कि हनुमानजी नवनीति नव निधि के दाता है यानी रिद्धि सिद्धि के दाता हैं | हनुमान जी एकमात्र देव है जिन्होंने अपने एक हाथ पर पर्वत को उठाया है और वह हवा की गति से भी तेज उड़ सकते हैं। अपनी मर्जी से अपने आकार में बड़े छोटे हो सकते हैं। हनुमान जी की शक्तियों की यह झलक मात्र है इनकी शक्तियों का वर्णन करना में कोई व् समर्थ नहीं है | हनुमान जी ऊर्जा के स्रोत है।
हनुमान जी भक्तो में अग्रणीय :
हनुमान जी सरलता और सादगी के प्रतीक है। उनके हृदय में अपने प्रभु के प्रति सेवा भाव है या समर्पण है । उन्होंने अपनी पूरा जीवन अपने आराध्य ईस्ट भगवान श्री राम के श्री चरणों में अर्पण कर दिया। जिस की भांति खुद राम जी के वचन है कि हनुमान जी ने अपनी भक्ति सेवा से भगवान से भी ऊपर का पद पा लिया था।
पंचांग के अनुसार चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जयंती मनाई जाती है और इस साल हनुमान जयंती चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 27 अप्रैल को पड़ रही है। हनुमान जी के भक्त इस दिन को हनुमान जी के जन्मदिवस के रुप में मनाते हैं।
हनुमान जयंती 2022 में कितने तारीख को है :
Hanuman Jayanti 2022 : इस साल अथार्थ Year 2022 में हनुमान जयंती चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा यानि की तिथि 16th अप्रैल 2022 को पड़ रही है।
निष्कर्ष :
हनुमान जयंती और हनुमान जन्मोत्सव के लिए आप सभी भक्तजनों को हमारी तरफ से बहुत-बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं भगवान हनुमान जी आपके जीवन में सदैव खुशियां भरें।
सब का निष्कर्ष यही निकलता है कि जिस भांति हनुमान जी ने सरलता और सेवा भाव से भगवान पद से भी ऊपर का पद प्राप्त कर चुके हैं। कभी हमें भी अपने जीवन में सरलता और सादगी का भाग लेना चाहिए और अपने इष्ट के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए।